Movie/Album: तुम बिन 2 (2016)
Music By: निखिल-विजय, अंकित तिवारी
Lyrics By: फैज़-अनवर, शकील आज़मी
Performed By: जगजीत सिंह, रेखा भारद्वाज
अब कोई आस ना उम्मीद बची हो जैसे
तेरी फ़रियाद मगर मुझमें दबी हो जैसे
जागते-जागते इक उम्र कटी हो जैसे
अब कोई आस ना उम्मीद बची हो जैसे
रस्ते चलते हैं मगर पाँव हमें लगते हैं
हम भी इस बर्फ़ के मंज़र में जमे लगते हैं
जान बाकी है मगर साँस रुकी हो जैसे
वक़्त के पास लतीफे भी हैं मरहम भी है
क्या करूँ मैं कि मेरे दिल में तेरा ग़म भी है
मेरी हर साँस तेरे नाम लिखी हो जैसे
कोई फ़रियाद तेरे दिल में दबी हो जैसे
किसको नाराज़ करूँ, किससे खफ़ा हो जाऊँ
अक्स हैं दोनों मेरे किससे जुदा हो जाऊँ
मुझसे कुछ तेरी नज़र पूछ रही हो जैसे
रात कुछ ऐसे कटी है कि सहर ही न हुई
जिस्म से जां के निकलने की ख़बर ही ना मिली
ज़िन्दगी तेज़ बहुत तेज़ चली हो जैसे
कैसे बिछडू़ँ कि वो मुझमे ही कहीं रहता है
उससे जब बच के गुज़रता हूँ तो ये लगता है
वो नज़र छुप के मुझे देख रही हो जैसे
Music By: निखिल-विजय, अंकित तिवारी
Lyrics By: फैज़-अनवर, शकील आज़मी
Performed By: जगजीत सिंह, रेखा भारद्वाज
अब कोई आस ना उम्मीद बची हो जैसे
तेरी फ़रियाद मगर मुझमें दबी हो जैसे
जागते-जागते इक उम्र कटी हो जैसे
अब कोई आस ना उम्मीद बची हो जैसे
रस्ते चलते हैं मगर पाँव हमें लगते हैं
हम भी इस बर्फ़ के मंज़र में जमे लगते हैं
जान बाकी है मगर साँस रुकी हो जैसे
वक़्त के पास लतीफे भी हैं मरहम भी है
क्या करूँ मैं कि मेरे दिल में तेरा ग़म भी है
मेरी हर साँस तेरे नाम लिखी हो जैसे
कोई फ़रियाद तेरे दिल में दबी हो जैसे
किसको नाराज़ करूँ, किससे खफ़ा हो जाऊँ
अक्स हैं दोनों मेरे किससे जुदा हो जाऊँ
मुझसे कुछ तेरी नज़र पूछ रही हो जैसे
रात कुछ ऐसे कटी है कि सहर ही न हुई
जिस्म से जां के निकलने की ख़बर ही ना मिली
ज़िन्दगी तेज़ बहुत तेज़ चली हो जैसे
कैसे बिछडू़ँ कि वो मुझमे ही कहीं रहता है
उससे जब बच के गुज़रता हूँ तो ये लगता है
वो नज़र छुप के मुझे देख रही हो जैसे